पीएम मोदी के यूक्रेन दौरे के ऐलान के बाद से ही वैश्विक स्तर पर हलचल बढ़ी थी. भारतीय प्रधानमंत्री के यूक्रेन दौरे को लेकर देश-दुनिया में जमकर चर्चा हुई. इसे संयोग कहेंगे या कुछ और लेकिन पीएम मोदी के यूक्रेन पहुंचने से दो दिन पहले ही चीन के प्रधानमंत्री ली कियांग ने रूस का रुख किया था, जहां उन्होंने बेहद गर्मजोशी से राष्ट्रपति पुतिन से मुलाकात की.
इसका सीधा सा मतलब है कि जब समस्याएं बातचीत की टेबल पर हल नहीं होती तो अक्सर वे युद्ध कि ओर ले जाती हैं. ऐसे ही एक युद्ध की आग में रूस और यूक्रेन ढाई साल से धधक रहे हैं. इसी युद्ध की रणभेरियों के बीच प्रधानमंत्री मोदी 46 दिनों के भीतर दोनों देशों का दौरा कर चुके हैं. मकसद साफ था- युद्ध की विभीषिका के बीच शांति का संदेश देना. ऐसे में जब राष्ट्रपति जेलेंस्की भरी प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहते हैं कि पुतिन की तुलना में प्रधानमंत्री मोदी ज्यादा शांति चाहते हैं तो इसकी गंभीरता काआकलन करना जरूरी हो जाता है. भारत दोनों देशों के बीच पीसमेकर की भूमिका निभाने के लिए तैयार है. खुद यूक्रेन और अमेरिका को भारत से उम्मीदें हैं कि वह यह भूमिका बखूबी निभा सकता है लेकिन चीन इससे सहज नजर नहीं आता.